कैसे करें अनसुना ?
वन्य जीवन की पुकार
चीड़ का चचत्कार!
सुलग रहे शिखर
दावानल प्रखर
जंगली गुलाब की
लताओं का बबलखना
पँचियों के उजड़े आशियाने देख
भरपूर फूलों से लदे
कदम्ब का शससकना!
कैसे करें अनदेखा ?
अपनी संवेदनाओं के हर पन्ने पर
अपने ही अक्षर हों ज़रूरी तो नहीं,
हस्ताक्षर तो ज़रूरी ही नहीं,
सब जुटे हैं,
एकजुट हो
सीचित तटबन्ध टूटे हैं,
पानी की बोछारे डालते ही
अबि का दावानल धआुँ उगलता है
अंदर ही अदंर
क्रोचधत हो सलुगता है!
सम्वेदनाएँ सकारात्मक, प्रखर हो
प्रकट हो रही हैं —
कि , तुमने जो उठाये
लताओं से टूटे झुलसे हुए
बिछोरा से भीगे गलुाब,
मेरे हाथों मैं आकर
मेरे महमान हो गए,
तुम्हारे एहसान तले दब गए