झूठा सच्चा है मान लेता हूँ
वह जो कहता है मान लेता हूँ
मिलते जुलते नहीं हैं फिर भी चलो
तुमसे रिश्ता है मान लेता हुं
इसज़लीए दश्त में उदास नहीं
आगे दरिया है मान लेता हूँ
चांद लगता है यूं हसीन मुझे
तेरा चेहरा है मान लेता हूँ
जल रहा शहर लोग मर रहे पर
सब कुछ अच्छा है मान लेता हूँ
कुछ सुकूं होश नींद कुछ भी नहीं
दिल धड़कता है मान लेता हूँ
इस जमीं पर खुदा की सूरत में
मां की ममता है मान लेता हूँ
एक सबक़त यही है कड़वा सच
जहर मीठा है मान लेता हुं
by – अज़हर हाश्मी बक़त