सुबह का वक़्त था। घर के काम काज में व्यस्त।
मैं और अमोली लगे हुए थे अपने अपने काम में।
अमोली मेरी काम वाली बाई। बाई कहना ज़रा अटपटा लगता है क्योंकि प्यारी सी लड़की है, यही कोई २० साल की।
सांवला रंग और करीने से छोटी में गुंथे हुए बाल, और चेहरे पर एक मुस्कान।
किसी काम को मना नहीं करती लेकिन अगर करने का वक़्त न हो या मन न हो तो हंस कर बोल देगी “भाभी,आज नहीं कल। “,उसकी सीधी बात मुझे भी अच्छी लगती है , कोई लाग लपेट नहीं और न ही कोई इधर उधर करने की आदत।
काम के दौरान हमारी ज़्यादा बात भी नहीं होती बस हम अपने अपने काम में लगे रहते है।
आज अमोली मंदिर के सामने झाड़ू बुहारती हुई कुछ थमी और फिर बोली “भाभी ये मूर्ति राधा कृष्ण की है न?”
ओह! बताना भूल गयी।
अमोली उसका असली नाम नहीं है। ये बंगाली मुसलमान है।
काम पर रखने से पहले मैं जात या धर्म नहीं पूछती। साफ़ सुथरी ,भाषा का ज्ञान और काम में निपुणता ये मेरे मापदंड हैं सो ,मुझ बेकसूर ब्राह्मण के घर राधा कृष्ण के मंदिर के आगे मुसलमान लड़की ही झाड़ू बुहारू करती है।
उसके इस सवाल पर मैं चाय पीते पीते रुक गयी, “हाँ। क्यों?”
उसने आगे पूछा “और ये शेरा वाली माता, न ? जेमनी माँ काली होँये “
उसकी इस हिंदी बंगला के मिले जुले सवाल और उत्सुकता मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आयी। इसलिए नहीं की मुझे धर्म का ज्ञान देना या देवी देवताओं की कहानी बेहद पसंद है किन्तु अमोली की उत्सुकता बच्चों की सी थी। जैसे वो जान लेना चाहती थी सब कुछ जो वहां उस छोटे मंदिर में था।
मैंने पूछा “हाँ ,सब शक्ति के ही स्वरूप है पर तू क्यों पूछ रही है ये सब ?तू तो हिन्दू नहीं। फिर क्यों जानना चाह रही है?इससे पहले तो कभी नहीं पूछा तूने। “
उसके चेहरे की उत्सुकता कहीं गायब हो गयी। शायद अपने मुसलमान होने के तथ्य को छुपाने के लिए उसने अमोली नाम रखा और आज मेरे सामने ये पर्दा हटते देख घबरा गयी।
मैंने आगे पूछा “तू मुसलमान है ये पता है मुझे। सवाल वो नहीं तू जानना क्यों चाहती है ये पूछ रही हूँ। “
उसने धीमी आवाज़ में बोला “अगर कभी कोई कुछ पूछे तो बता सकूं इसलिए जानना चाह रही थी। “
“हम्म … कहाँ की हो तुम ?गाँव पता जानती हो ?”
“रंगपुर। बांग्लादेश। मेरी दादी और पापा यहां आये थे 24 साल पहले। फिर ममी से शादी हुई और मैं तो यहीं अपने बंगाल में पैदा हुई। मिदनापुर में। “
उसके “अपने बंगाल” पर एक दुलार सा हो आया।
“फिर दिल्ली कब आयी ?”
“पापा, दादी, माँ मेरे पैदा होने के छह महीने बाद ही दिल्ली आ गए। मैंने आठवीं तक पढ़ाई भी की सी. आर पार्क के कन्या विद्यालय में। फिर काम पर लग गयी। “
“हम्म “
“फिर इस तरफ बिल्डिंग का काम ज्यादा होता है न। नया शहर बन रहा था तो दिल्ली से यहां आगये। अब तो यहीं पास में “**” में घर भी लिया है २ कमरे का। “उसने खुश होते हुए कहा।
“और भाभी मेरे और मेरे पापा के पास सारे कागज़ है इसलिए मुझे कोई डर भी नहीं है।”
“हम्म ,डरना भी मत। “
उसके कुछ कम पढ़ेलिखे दिमाग ने सारे तार जोड़ रखे थे, ख़ुद को इस ज़मीन से जोड़ने के लिए।
Simple,fluid,leaves a mark
I’m speechless..निःशब्द, कुछ अनछुआ सा छू गया मन को। अमोली सिर्फ़ एक लड़की नहीं है, पूरी संस्था है, जिसकी ज़िम्मेदारी उसकी मालकिन के घर की ओर है व निष्ठावान सेवा अहम है। छोटी सी कहानी मन मथ गई। मेरी 20 साल की सहायिका रूमा भी ऐसी ही है, पर चुप रहती है.. न जाने कितने बोझ सिर पर लादे है।
आपसे ये सुनना सुखद है ।उम्मीद है लिखती रहूं ऐसा।