नहीं चाहिए #मातृ_दिवस का #ढोंग हर #माँ को
चाहिए एक सच्चा #मातृ_दिवस जो हर #रोज़ हो…
हम कब तक एक दिन मातृ दिवस का ढोल बजा कर माँओं को ख़ुश करते रहेंगे।क्या जो बिना विवाह के या रेड लाइट एरिया या फिर बार में नाच के अपने बच्चों का पेट भरने या परिवार का भरण पोषण करने वाली औरत माँ नही होती ? क्या तथकथित सभ्य समाज की या परिवार की इच्छा अपनी मर्ज़ी के बिना पूरी करने वाली स्त्रियों को ही हम सम्मान दे सकते हैं ?या फिर ये कहें कि उन्हें ही सम्मान पाने का अधिकार है?
आज मेरे मन में ये सवाल और गहरा हो गया है कि क्या ये ज़रूरी है की माँ हर बार सही हो?
क्या माँ को गलती करने का अधिकार नहीं क्या हर समय परफेक्ट होना उसके लिए ज़रूरी है?
शुक्र है भगवान का कि मुझ पे ऐसी पाबंदी नहीं।मैं ग़लत भी होऊँ तो मेरे बच्चे मुझे जज नहीं करते।उनकी निगाह में मुझे ग़लतियों का अधिकार है उनके हिसाब से जब भगवान से ग़लती हो सकती है तो उनकी माँ से भी।
उनके हिसाब से मुझे काम इसलिए नहीं करना चाहिए कि उनको अपने दोस्तों में शान दिखानी है कि उनकी माँ “वर्किंग वुमन” है ना ही कि ज़बरदस्ती वो खाना बनाए या खाना बनाना सीखे क्योंकि उसके बच्चों और घर वालों को उसका घर के काम करना पसंद है।उनके हिसाब से ये सब काम अगर माँ को करने हैं तो तब ही कि जब एक औरत को उन कामों को करने का मन हो।
मैं शान से कह सकती हूँ की मेरा आज का व्यक्तित्व और अस्तित्व उन्हीं की देन है।मैं ख़ुद भी यही मानती हूँ | मुझे लगता है कि ये हर औरत का अधिकार है |हम औरतें अपनी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाओं को अपने बच्चों,पति और घर की जिम्मेदारी के आगे रखना क्यों भूल जाती हैं ?
हम माँओं को भी अपनी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का अधिकार है। उसके लिए बच्चों के बड़ा होने का इंतज़ार क्यूँ करना? अगर हमें कोई भी काम नहीं करना तो ये हमारी मर्ज़ी और इच्छा के मुताबिक होना चाहिए।
पर ज़रा सोचिए कि इस समाज में कितनी औरतें इतनी खुश किस्मत हैं।माँ बनना दुनिया की बहुत बड़ी नेमत है पर ये बात भी हमें इस रूढ़िवादी समाज ने ही पढ़ाई है।अगर माँ बनना दुनिया की इतनी बड़ी नेमत है तो बिन ब्याही माँ के लिए अभिशाप क्यूँ?
हम अपनी माँ को पूजते हैं पर एक औरत अगर बार में या रेड लाइट एरिया में काम करती है तो उसके लिए माँ शब्द गाली बन जाता है।
कोई औरत अगर माँ बनना ना चाहे तो समाज उस पे माँ बनने का दबाव डालता है और जो माँ बनना चाहती है पर ग़र वो अविवाहित हैं तो आप उसे समाज में अश्लीलता फैलाने का ख़िताब दे देते हैं और ऐसा करने में औरतें ही सबसे आगे होती हैं।मैं तो आजकल देख रही हूँ की औरतें ही अपने फ़ेसबुक स्टेट्स पर डाल रही हैं कि एक नाचने वाली किसी की माँ बहन या बेटी नहीं होती या फिर लिख देती हैं की अपनी आज़ादी माँगने वाली को कोई नौ महीने की ग़ुलामी दे गया या फिर एक हिरोइन कामयाब इसलिए है क्योंकि उसका कई पुरूषों से शारीरिक सम्बन्ध हैं।
कभी सोचा है आपने कि सीमाओं पर युद्ध के दौरान कई लड़कियाँ बिन ब्याह गर्भवती हो जाती हैं क्योंकि वो सीमा पर युद्ध के अत्याचार का शिकार होती हैं लेकिन अपने बच्चों के लिए वो भी माँ होती हैं।हर जगह पिता का नाम पूछा जाता है और अगर रेड लाइट का या रेप से उत्पन्न बच्चा हो तो उसको स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता।
माँ को पिता के नाम और अपनी इच्छाओं का मोहताज बना हम मातृ दिवस मनाने का ढोंग करते हैं।सच्चा मातृ दिवस तब होगा जब माँ बनने का और ना बनने का या ये कहूँ कि फिर एक स्त्री को कब माँ बनना ये अधिकारी उसके पास हो और माँ को भी ग़लती करने का अधिकार हो।
उसकी ग़लती उसके तिरस्कार का कारण ना बने जैसे वो आपकी ग़लती में आपके साथ खड़ी होती है वैसे आप भी उसकी ग़लती में उसके साथ खड़े हों सिर्फ़ अपनी माँ के ही नहीं अपितु दूसरे की माँ के साथ भी।
”क्योंकि माँ सिर्फ़ माँ होती है तेरी या मेरी नहीं “
To read more from Author
कलामंथन भाषा प्रेमियों के लिए एक अनूठा मंच जो लेखक द्वारा लिखे ब्लॉग ,कहानियों और कविताओं को एक खूबसूरत मंच देता हैं।अगर आप भी लिखने या पढ़ने के शौकीन हैं तो हमारे मंच का हिस्सा बनिये Log in to http://www.kalamanthan.in
लेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं और ज़रूरी नहीं की कलामंथन के विचारों की अभिव्यक्ति हो।
हमें फोलो करे Facebook