“आज खाने में क्या बना रही है बहू?, कंगना जी ने उत्सुकतावश पूछा।
“कुछ नहीं माँ जी, आज संडे है तो सोचा चावल, दाल और तरोई की सब्जी बना देती हूं वैसे भी आपके बेटे का पेट ठीक नहीं है”, बहू ने कहा।
कंगना जी उदास होकर लीवींग रूम में चली गई जहां पतिदेव समाचार पत्र पढ़ रहे थे। उनको देखकर कंगना जी को बहुत गुस्सा आ रहा था। उन्हें देख मन में सोच रही थी,” हे भगवान! ऐसे नीरस आदमी से मेरी शादी क्यों करा दी? किसी चीज से मतलब नहीं है, शादी की सालगिरह हो या जन्मदिन कुछ याद नहीं रहता।
अब इनसे तो उम्मीद ही छोड़ दी है मैंने लेकिन बच्चे! आज वो भी भूल गए। हर साल तो बड़े धूम-धाम से मेरी शादी की सालगिरह मनाते हैं। केक मँगाना, डिनर के लिए बाहर ले जाना। आज बेटे को भी याद नहीं और बहू को भी नहीं। बेटी ने भी अभी तक फोन नहीं किया।”
“ऐसे क्या घूर रही हो? चाय नहीं मिली क्या?” कंगना जी की टांग खींचते हुए बोले और हंसने लगे।
तभी कंगना जी को मौका मिल गया पतिदेव को खरी-खोटी सुनाने का, क्योंकि उन्होंने सुबह-सुबह ही पतिदेव को यह दिन याद दिलाने के लिए बहुत प्रयास किया था लेकिन उन्हें याद न आया तो इसी बहाने अपनी भड़ास निकालने के लिए बरस पड़ी, ” तुम्हें तो मेरी बड़ी चिंता है, बहुत ख्याल रखते हो मेरा! तुमको तो बस मेरी टांग खींचने का बहाना चाहिए।”
इतने में बहू चाय लेकर पहुंच गई, उसे देखते ही दीपक जी बोले, “ले आ बहू जल्दी ले आ, नहीं तो तेरी सास मुझे ताने देते-देते मार डालेगी।” ससुर जी की बात पर बहू को भी हंसी आ गई। उसने पल्लू मुंह में दबा लिया और चाय देकर रसोई घर में चली गई और वहां मुंह में पल्लू दबाकर खुब हंसी।
दरअसल कंगना जी के गुस्से का कारण सबको पता था लेकिन सब उनसे थोड़ी मसखरी कर रहे थे।
पति से नाराज होकर कंगना जी चाय लेकर अपने कमरे में जाने लगी। इस पर भी दीपक जी उन्हें छेड़ने से बाज नहीं आए। बोले, अरे मैडम चाय तो हमारे साथ पी लो! इतना भी क्या गुस्सा? अब चाय मिल तो गई है। कंगना जी जाते हुए बोली, ” तुम कभी नहीं सुधरोगे”।
दोपहर हो गई इस बीच वो अपने बेटे के कमरे में गई। उसकी तबीयत पूछी। और लगे हाथ उसे भी सालगिरह याद दिलाने की कोशिश करते हुए बोली, “बेटा! आज की तारीख क्या है?” इस पर बेटे ने अंजान बनते हुए कहा,” मां आज शायद बाइस तारिख है। पापा पेपर पढ़ रहे हैं उनसे पूछ लीजिए।” कंगना जी ने कहना चाहा आज बाईस नहीं तेईस है, तेरी मां की शादी की सालगिरह है लेकिन कह नहीं पाई। वापस अपने कमरे में चली गई और सो गई।
शाम हुई तो चाय पीने के बाद बोली, “मैं पार्क में जा रही हूं। ” इस पर दीपक जी ने छेड़ते हुए कहा, “क्यों भाई आओ हमारे साथ बैठकर न्यूज देख लो। देश – दुनिया की खबर भी रखनी चाहिए।” इस पर कंगना जी ने चिढ़ते हुए बोला,”तुम्हें और ये तुम्हारा न्यूज न देखना पड़े इसलिए तो बाहर जा रही हूं। ”
उनके बहर जाते ही बेटा – बहू और दीपक जी तीनों पेट पकड़कर हंसने लगे। “आज तो तुम्हारी मम्मी का चेहरा देखने लायक था, सबके पास बेचारी ने बारी – बारी जाकर शादी की सालगिरह याद दिलाने की कोशिश की। वैसे हम सबने मस्त एक्टिंग की।” दीपक जी ने हंसते हुए कहा।
“हाँ पापा लेकिन इससे पहले मम्मी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाए, चलिए हम सब अपने काम पर लग जाए।”
“हाँ- हाँ, चलो भाई नहीं तो तुम्हारी मम्मी के गुस्से का शिकार मैं ही बनूंगा”, दीपक जी ने कहा।
कुछ ही मिनटों में सबने मिलकर घर को सजा दिया। बहू ने डायनिंग टेबल पर केक रखकर, चारों तरफ फूल से हैप्पी एनिवर्सरी लिख दिया। दीपक जी ने कंगना जी का गिफ्ट भी तैयार कर लिया और सब तैयार होकर उनके आने का इंतजार करने लगे। आधे घंटे बाद जैसे ही बेल बजी तो दरवाजा खोलते हैं तीनों एक साथ चिल्ला उठे “हैप्पी एनिवर्सरी”।
कंगना जी चौक गई और बेटे के कान खींचते हुए बोली, “सुबह से तुम सब मुझे छका रहे थे?” इस पर बहू ने कहा, “अरे मम्मी हम सब तो आपको सरप्राइज देना चाहते थे। चलिए अब जल्दी से तैयार होकर आइए, केक काटते हैं।”
कंगना जी तैयार होकर आई और फिर दीपक जी के साथ मिलकर केक काटा। डिनर के लिए सब बाहर चले गए। वहां डिनर करते हुए कंगना जी ने दीपक जी से कहा,” तब अलमारी में कपड़े की तह के नीचे गिफ्ट छुपाकर तुमने ही रखा था। थैंक्यू बेटा! जो तुमने जस्ट बेक से केक मंगवाया!” कंगना जी की बात सुनकर सब उनका चेहरा देखने लगे।
“इसका मतलब तुम सब जानती थी और हम समझ रहे थे कि हम तुम्हें छका रहे हैं जबकि तुम हम सबको छका रही थी।” दीपक जी ने आश्चर्य चकित होते हुए कहा।
“आप लोगों ने मुझे इतना बुद्धू समझ रखा है क्या?”
“मान गए उस्ताद! आप तो एक्टिंग में हम सबकी उस्ताद निकली।”, दीपक जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
सब एक साथ ठहाके मारकर हंसने लगे।
Pic credit: Still from Sara Bhai vs Sara Bhai - A popular TV serial.
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