दिसम्बर की ठण्ड की शुरुआत हो चुकी थी। मैं अपने शरारती बेटे के लिए आलू का पराठा बनाने में वयस्त थी, तभी मोबाइल की घंटी बज उठी। फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ पापा थे।
पापा से बात करके पता चला, मम्मी की तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही। माँ से बात हुई तो लगा, वो कुछ कहना तो चाह रही थी पर कह नहीं रही थी।
मैंने भी दवाइया समय पर लेने और खाने पीने की जरुरी हिदायते दे फोन रख दिया।
कहने को तो जायदा कुछ नहीं, वायरल फीवर था, जो 3 से 5 दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन माँ की तबियत के बारे में सुन मेरा मन बाकि कामों से उचट सा गया था।
शाम के समय जब पतिदेव ऑफिस से घर आए.,तो मेरा उतरा हुआ चेहरा देख, उन्होंने सबसे पहले वजह पूछी, क्या हुआ.. मुँह क्यों लटका रखा हैं?
मैंने भी सवाल का जवाब सवाल से दे दिया। ये बताओ मुझे अपने मायके गए हुए कितने दिन, महीने या साल हो गए? पतिदेव ने हिसाब किताब लगाया और बता दिये एक साल होने को आए हैं , पिछले साल दीवाली पर गई थी न!
मैं भी उतरे हुए चेहरे के साथ उनके हाँ में हाँ मिलाई और चाय बनाते बनाते अपनी व्यथा गाथा सुना दी, वही तो देखिये ना, 1 साल होने को आए घर गए हुए..
मम्मी की तबियत ठीक नहीं है। मन हो रहा जा कर मिल आती।
मैं अपने धुन में अपनी बात कहती जा रही थी और उधर पतिदेव लैपटॉप खोल कर बैठ चुके थे। चाय की चुस्कियों के साथ उन्होंने घर जाने की मेरे और मेरे बेटे की हवाई जहाज की टिकट बुक करवा दी।
उनका कहना था 10 दिनों बाद बेटे के स्कूल में क्रिसमस की छुटिया शुरू हो जाएँगी, तो मैं बेटे को साथ ले माँ से मिल आऊ।
पहले तो मैं ख़ुशी से झूम उठी फिर ध्यान आया। पतिदेव ने तो सिर्फ मेरी और बेटे की टिकट बुक की थी, मैंने तुरंत उनसे पूछा! तो क्या मैं और शिवांश अकेले जायेंगे? आप नहीं चलेंगे हमारे साथ?
जवाब में उन्होंने अपने काम की व्यवस्तता दिखा,मुझे बोल दिया, जाना चाहती हो मायका तो अकेले ही जाना होगा। मेरी छुट्टी तो मिलने से रही बाद में शिकायत मत करना। मेरी वजह से नहीं जा पाई।
बात तो उनकी सच थी ,इधर मेरा मन भी माँ से मिलने के लिए बैचेन हो रहा था। फिर मैंने डरते घबराते अकेले जाने के लिए हाँ कर दी, और ऐसे शुरू हुई मेरी पहली अकेली हवाई यात्रा।
माँ पापा को फोन करके बताई अपने आने के बारे में, माँ चिंतित हुई तो माँ को समझाई, मुंबई से पटना सिर्फ 2 घंटे की यात्रा होती है हवाई जहाज से, मैं आ जाउंगी आप चिंता ना करे ,और लग गई जाने के लिए सामान की पैकिंग करने में।
जाने का दिन भी आ गया। सुबह की 8 बजे की फ्लाइट थी। तो पतिदेव मुझे छोड़ने, मेरे साथ एअरपोर्ट तक आ गए। पुरे रास्ते वो मुझे चेक इन की सारी प्रक्रिया समझाते जा रहे थे।
मन में घबराहट और ख़ुशी का मिलाजुला भाव लिए, मैं उनकी बात सुन और समझ रही थी।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के बाहर पतिदेव से गले मिल, उन्हें बाय बोला , एक हाथ से सामान और दुसरे हाथ से अपने बेटे का हाथ पकड चल पड़ी में एअरपोर्ट के अंदर…
गेट पर ही माँ बेटे का id प्रूफ दिया, फिर काउंटर पर सामान दे इ-टिकट दिखा टिकट बनवाई। फिर निर्धारित गेट नम्बर पर पहुच पतिदेव को फोन मिलाई।
पहली रिंग में ही उन्होंने फोन ऐसे उठा लिया था जैसे मेरे फोन की प्रतीक्षा कर रहे हो,सारी बाते बता, मैंने पतिदेव से बोला ,”अभी तक तो सब ठीक है, 2 घंटे की फ्लाइट में बेटे ने तंग किया, तो कैसे सम्भालूंगी आपके बिना। “
पता नहीं कैसे मेरे ऊपर पूरा विश्वास था मेरे पतिदेव को, जोर से हंसने के बाद उन्होंने बोला, मैडम सब कुछ तुम्ही संभालती हो, मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहता हूँ.. इतना मत घबराओ। उनकी बाते मुझ पर जादू सा असर कर रही थी।
कहते है ना जिनसे आप प्यार करते है, अगर उनका विश्वास और प्यार आपके साथ हो तो आप हर मुश्किल आसानी से पार कर सकते है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ था।
मेरे ऊपर किए गए मेरे जीवनसाथी के विश्वास ने मुझमे आत्मविश्वास भर दिया था.. मैं इस यात्रा के पहले अकेली कभी कंही नहीं गई थी,पर धीरे धीरे सारी घबराहट ख़तम हो रही थी।
एअरपोर्ट पर चेक- इन की घोषणा हुई और पतिदेव ने शुभ यात्रा बोल फोन रख दिया। बेटे का हाथ थामे थोड़ी ही देर में मैं बादलों के ऊपर थी। हमारी फ्लाइट उडान भर चुकी थी। मेरे बेटे ने भी हमारी पहली अकेली यात्रा में बहुत अच्छे से सहयोग दिया था। थोड़ी देर में माँ -बेटे नींद की आगोश में थे। आँख खुली तो फ्लाइट लैंडिंग के लिए तैयार थी।
सामान के साथ बाहर आई तो पापा और भईया एअरपोर्ट के निकास द्वार पर खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे… बेटा भाग कर अपने मामा के गले से झूल गया और मैंने पापा के पैर छू लिए।
कार में बैठ कर पतिदेव को फोन की और धन्यवाद बोली, ये उनका ही विश्वास था। मैं अपने 3 साल के बेटे को ले अपनी पहली अकेली हवाई यात्रा कर अपने मायके पहुँच चुकी थी।
इस यात्रा के बाद बहुत सी यात्राएं, मैंने अकेले हवाई जहाज से की, लेकिन कहते है ना पहली बार तो सिर्फ एक बार ही आता है, इसलिए दिल के किसी कोने में उसकी यादे के लिए खास होती हैं।
कैसा लगा आप सब को मेरी पहली हवाई यात्रा का ये सफ़र जरुर बताइयेगा..
To read more from Author
कलामंथन भाषा प्रेमियों के लिए एक अनूठा मंच जो लेखक द्वारा लिखे ब्लॉग ,कहानियों और कविताओं को एक खूबसूरत मंच देता हैं। लेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं और ज़रूरी नहीं की कलामंथन के विचारों की अभिव्यक्ति हो।
हमें फोलो करे Facebook
Very good .
thanku