अस्पताल में हर कहीं अफ़रा तफ़री मची हुई थी, साधारण दिनों में खाली रहने वाली लॉबी पूरी तरह से भरी हुई नज़र आ रही थी। तभी लाउड स्पीकर पर एक महिला की आवाज़ गूँजती है – “मीरा के परिवार से रोहन जहाँ कहीं भी हो दूसरे माले वाले आई सी यू सँख्या 3 में तत्काल पहुँच जाए”। अस्पताल के मुख्य द्वार पर बने मंदिर पे भगवान को निहारता हुआ रोहन जैसे ही ये उद्घोषणा सुनता है तेज़ी से लिफ्ट की तरफ़ भागता है। उसके पूरे जीवन में शायद ही बेचैनी ने उस पर इतना सितम ढाया होगा।
आई.सी.यू के बाहर ही रोहन को रोक लिया जाता है।
मैं रोहन हूँ, मीरा का पति… वो ठीक तो है ना???? रोहन उसे रोकने वाले व्यक्ति से पूछता है।
वो व्यक्ति कहता है- मुझे नहीं मालूम, डॉक्टर साहब ही बता सकते हैं।
तेज़ी से धकड़ते दिल के साथ रोहन वहीं दीवार पर पीठ से टेक लगा कर खड़ा हो जाता है। अगले ही पल डॉक्टर रोहन को अंदर बुला लेते हैं।
गहरे आसमानी रंग वाले अस्पताल के कपड़े पहने मीरा का शिथिल शरीर देख रोहन का दिल और ज़्यादा जोर से धड़कने लगता है। डॉक्टर रोहन से पूछते हैं- आपके साथ कोई और आया है यहाँ? रोहन ना में सर हिला देता है।
देखिए, आप अपने परिवार के बाक़ी सदस्यों को बुला लें। हम पेशेंट को दूसरे अस्पताल में रेफ़र करना चाहते हैं।
यहाँ वेंटिलेटर अब नहीं बचे हैं और अगर पेशेंट को वेंटिलेटर समय पर नहीं मिला तो यह बा-मुश्किल 3 घण्टे और ज़िंदा रह सकती है। हमारी नज़र में अब कोई अस्पताल नहीं है जहाँ वेंटिलेटर ख़ाली हो, एक बार आप भी प्रयास कर लें।
दो रात का जगा हुआ रोहन अपनी सारी थकान वहीं आई.सी.यू में छोड़ कर दूसरे अस्पताल का पता करने में जुट जाता है। अपने नाते रिश्तेदारों के साथ वो एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल वेंटिलेटर की तलाश में भटकने लगता है।
3 घण्टे बीत जाते हैं, रोहन को अब तक कोई ऐसा अस्पताल नहीं मिला था जहाँ पर वेंटिलेटर ख़ाली हो।
पूरे शहर में रोहन की तरह और भी लोग एक अदद वेंटीलेटर के लिए भटक रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों कोई नीलामी चल रही हो और वेंटिलेटर के लिए बोली लग रही हो। आम दिनों में 20 से 25 हज़ार प्रतिदिन के हिसाब से मिलने वाला वेंटिलेटर आज 1 लाख प्रतिदिन की क़ीमत छू रहा था। मरीज़ बढ़ रहे थे और सुविधायें सीमित हो चुकी थी।
मीरा कोमा में जा चुकी थी, उसका ब्लड प्रेशर भी नीचे गिरने लगा था और एक एक कर के सारे अंग ख़राब होने लगे थे। डॉक्टर ने तीन घण्टे बोले थे, मीरा ने 8 घण्टे मौत के साथ जंग लड़ी और अंततः हार गयी।
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यहाँ सिर्फ़ एक मीरा या रोहन नहीं हारे थे, यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी हारा था, और हम रोज़ ही हार रहे हैं।
एक एक मौत के साथ हमारी ये हार बढ़ती जा रही है।
सरकारों का काम इंतेज़ाम दुरूस्त रखना है किंतु हमें ये प्रयास करना चाहिए कि हम को ये नौबत नहीं लानी चाहिए जहाँ ये सारे इंतेज़ाम कम पड़ जाए।
हम क्यों किसी सरकारी आदेश का इंतिज़ार कर रहे?
क्या हम ख़ुद से संयम नहीं रख सकते? क्या हम मास्क, बार बार हाथ धोना, भीड़ में जाने से बचने जैसे मामूली उपाय से इस कोरोना को मात नहीं दे सकते।
भारत में अहंकारी लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा है और यह अहंकार का दूसरा ही रूप है कि ये मान लिया जाए कि ” ये कोरोना हमको नहीं होगा”।
सबसे पहले हमें इस अहंकार को तोड़ना होगा। तब ही हम कोरोना से जंग जीत पाएंगे।