6 दिसम्बर 1992 शाम के 6 बज रहे थे हम सब आँगन में बैठ कर चाय पी रहे थे। तभी मेरे बड़े भाई अब्दुल बड़ेघबराये डरे सहमें से भागते हुए घर में घुसे हम सब को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हुआ कि भाईइतने डरे हुए हैं कि तभी अब्बा ने बड़ी जोर की आवाज़ में भाई से पूछा।
“क्या हुआ??”
“क्या हुआ अब्दुल तुम इतने डरे हुए क्यों हो? यूँ हाफ क्यों रहे हो?”
“वो…… वो अब्बा”
“क्या??”
“वो”
“वो!”
“अरे कुछ बोलेगा भी कि वो वो करता रहेगा”
भाई ने कुछ दम लेते हुए कहा
“वो अब्बा शहर में दंगे भड़क गये हैं! बाबरी मस्जिद कि गुम्बज गिरा दी गई है शहर में मुसलमानों को मारा जा रहा है कुछ लोग हमारे घर की ओर भी आ रहे हैं”
“अरे! ऐसे कैसे आ रहे है अब्बा ने कहा बाबरी मस्जिद कोई हमने थोड़े ही बनवाई है….. वो मुआं बाबर बनवा कर गया था और ये मरे नेता उस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं….”
तभी
“मारो सालों को इसी घर में रहते है!! साले मुल्ले ..ज़िंदा मत छोड़ना!”
बाहर से आता ये शोर सुन कर चाचा जान दरवाज़े की तरफ़ लपके और दरवाज़ा बंद कर दिया।
खिड़की से झाँक कर देखा तो कुछ लोग लाठी तलवार लिए हमारे ही घर की ओर आ रहे थे हम सब डर गये।
तभी अब्बा ने ज़ोर से अम्मी से कहा
“समीना औरतों और बच्चों को ले कर कमरे में जाओ और अन्दर से दरवाजा बंद कर लो”
अम्मी हम सब को ले कर कमरे की तरफ भागी और कमरा अंदर से बन्द कर लिया।देखते ही देखते उन लोगों नेदरवाज़ा तोड हमारा घर घेर लिया।उन सब की आँखों में खून नज़र आ रहा था।
अब तक मैंने शैतान सिर्फ किस्से कहानियों में सुने थे पर देखे पहली बार उस दिन।एक एक कर उन शैतानों नेमेरे घर के लोगों को जान से मारना शुरू कर दिया।हम सब बच्चे ये देखकर सहम गये।वो लोग हमारे कमरे कीतरफ आने लगे।
कमरे में कोई और दरवाज़ा भी नहीं था की हम वहाँ से भाग कर अपनी जान बचा लें।अम्मी चाची और फूफी नेदरवाज़े को रोकने के लिए पलंग और टेबल सरका कर दरवाज़े पर लगा दिये।पर उन लोगों में इतना गुस्सा थाहमारे प्रति की हमारी दया की पुकार का भी उन पर असर न था कि तभी कमरे में एक मर्द की आवाज़ आई।
“मुझे अपना हाथ दो मैं तुम सब को यहाँ से बाहर निकाल लूँगा”
हमने जैसे ही उस आवाज़ की तरफ़ देखा तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना ही ना रहा।ये आवाज़ तो राम अंकल की थी वो हमारे कमरे के रोशनदान पे थे ओर हमें वहाँ से निकालने आये थे हम सब की जान में जान आई। कमरेके बाहर से शोर अब भी आ रहा था।वो लोग अब भी कमरे का दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।
“अरे सोच क्या रहे हो जल्दी करो वरना ये लोग कमरे में आ जायेंगे तब हम कुछ नहीं कर पायेंगे”
राम अंकल ने चिल्लाते हुए कहा
फिर उन्होंने एक एक करके हम सब को उस जीवन दायी रोशनदान के सहारे कमरे से बाहर निकाला औरसुरक्षित जगह पहुँचा दिया।
हम सब तो राम अंकल और उस जीवनदायी रोशनदान की वजह से बच गये पर मेरे भाई चाचा और अब्बा अबइस दुनिया में हमारे साथ नहीं है काश कि होते।
आज कल के घरों में रोशनदान नहीं होते।
अकसर ये सोचती हूँ की हमारे मुल्क के सियासतदारों ने हमारेबीच मज़हबों की कभी ना भरने वाली ऐसी खाई खींच दी हैं की कभी खुदा ना करे कोई ऐसा वक्त आया तोफिर कोई राम अंकल हमें कहाँ से बचायेंगे।
काश कि ऐसा वक़्त आने से पहले हम जनता इन सियासी चालोंको समझ जायें।काश किसी को कभी जीवन में जीवनदायी रोशनदान की ज़रूरत ही न पड़े।