ढलता सा सूरज था
रौशनी सी चमक रही थी
वही दूर एक चेहरे पर
रौनक सी झलक रही थी
चिड़ियों की चहचहाट थी
और था अजीब सा शोर
शायद मेरे मन में घुस आया था
एक प्यारा सा चोर
अचानक फिर हवाओ की रफ़्तार कुछ
इस कदर तेज हो गयी
की उसकी एक झलक की आस में
मेरी नब्ज भी कुछ तेज हो गयी
फ़िर साँझ की धुन्द का कहर
छाया इस कदर
कि वो उस धुन्दं मे अचानक
कहीं खो गयी