राधे ,कहाँ गयी तेरी बन्सी और बृज की वो छाँव
न रहा वो मिट्टी का अपनापन और गऊओं से लगाव
अब नहीं आऊगा तेरे गॉंव
वो पुष्पों की सरसता और सरोवर का वहाव
लोगो का अपनापन और गैरो से लगॉव
याद बहुत आता आएगा है तेरा वो गॉंव
वो बरगद पर झूला और वृक्षों का झुकाव
बारिश की बूंदो संग मन का लगाव
शायद कभी नहीं ढूंढ पाउगा, में ऐसा कोई गॉंव
वो चन्दन सी चादिनी में फूलों की छॉव
कोयल की मृदु भाषा और यमुना का बहाव
याद बहुत आता है मेरा वो गॉंव
वो माखन की गगरी और दूध के लिये टकराव
गऊओ और बछड़ों संग क्रीड़ा का भाव
शायद अब कभी ढूढ़ ना पाउगा मेरा वो गॉव
Too good…
बहुत बढ़िया भाव
बहुत बढ़िया लिखा