सावित्री देवी के घर में आज सुबह से ही बड़ी चहल-पहल थी। सावित्री देवी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही ना था। खुशी के मारे उनके कदम एक जगह पर टिक ही नही रहे थे।
सावित्री देवी आखिर खुश भी क्यों ना हो ? उनकी इकलौती बेटी सुनयना आज पूरे 2 वर्षों के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करके शहर से घर वापस आ रही थी। सुनयना मे तो जैसे सावित्री देवी और ठाकुर साहब दोनो की जान बसती थी।उनका बस चलता तो वो सुनयना के बाहर पढ़ने जाने के फैसले को कभी भी ना मानती।
मगर जब सुनयना ने उन्हें समझाया,कि उसके उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें उसे बाहर पढ़ने के लिए भेजना ही होगा, तो सुनयना का मन रखने के लिए अपने दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने उसे बाहर पढ़ने भेजने के लिये अपनी हामी भर दी थी।
अपने ही ख्यालों में खोई हुई सावित्री देवी जब यही सब सोचे जा रही थी, तभी पीछे से सुनयना ने आकर उनकी आंखों पर हाथ रखते हुए कहा, पहचानो कौन ? सावित्री देवी ने मुस्कुराते हुए सुनयना के हाथों को चूमते हुए कहा, तुम्हें तो बिना देखे, बिना तुम्हारी आवाज सुने भी , मैं लाखों की भीड़ में से पहचान सकती हूँ।
सुनयना भी मुस्कुराते हुए माँ के गले मिलकर बोली, “ओह माँ, मेरी प्यारी माँ, वहां शहर में सब कुछ था, मगर जानती है , मैंने वहाँ हर पल आपको कितना मिस किया।” सावित्री देवी ने भी आँसू भरी आँखो से सुनयना को देखते हुए कहा,” मैंने भी तुम्हें हर पल बहुत याद किया,बेटा। तुम्हारे बिना एक-एक पल मुझे एक-एक युग जैसा लगता था। मगर अब तुम आ गई हो, बस अब एक पल के लिए भी तुम्हें अपनी आँखों से दूर नहीं होने दूंगी।”
“वैसे भी अब बहुत हो गई पढ़ाई-लिखाई। बहुत सारे अच्छे घरों से तुम्हारे लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे हैं। अब तो बस किसी अच्छे से घर मे तुम्हारा रिश्ता तय करके तुम्हारे हाथ पीले कर देने हैं।”
यह सुनते ही सुनयना ने गुस्से से कहा, “अच्छा माँ,अभी तो आप कह रही थी कि एक पल के लिए आंखों से दूर नहीं होने दूंगी,और अगले ही पल मुझे खुद से हमेशा के लिये दूर भेजने की तैयारियाँ कर रही है।” तब माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, ” यह तो दुनिया की रीत है बेटा, इसे तो हर माँ-बाप को निभाना पड़ता है। मगर तू फिक्र ना कर, बिना तेरी मर्जी के कुछ भी नहीं होगा।”
ठाकुर साहब ने आते ही कहा, “बिटियां अब हमेशा के लिए आ गई है , यही तुम्हारे पास ही रहने वाली है। जब चाहो , जितनी चाहो,उतनी बातें करना। मगर अभी पहले उसको कुछ खिलाओ पिलाओ। सुबह से तो उसके लिए इतनी तैयारियाँ की थी, अब चलो जी भर कर उसकी पसंद के सभी पकवान उसे खिलाओ।”
सावित्री देवी ने भी मुस्कराकर कहा, “सच कह रहे हैं आप बिटिया से बाते करने में तो मैं सब बिल्कुल भूल ही गई थी।” फिर उन्होंने सुनयना को पास बिठाकर उसकी पसंद के सभी पकवान परोसकर खुद अपने हाथो से उसे खाना खिलाया।
सुनयना की चंचल, शोख खिलखिलाती मुस्कुराहटों से सावित्री देवी का घर फिर से जैसे खुशियों से महक उठा था। अब ठाकुर साहब और सावित्री देवी जल्द से जल्द अपनी खूबसूरत बेटी का कन्यादान कर अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी को अच्छे से पूरी कर देना चाहते थे।
सुनयना के लिए बड़े-बड़े घरों से लोग अब रोज़ ही रिश्ते लेकर आने लगे।आखिरकार सुनयना ने रोज़-रोज़ के इन नए रिश्तो से घबराकर ठाकुर साहब को बता दिया, कि “वह अपने कॉलेज के दोस्त समीर को बहुत पसंद करती है। वो एक बहुत ही अच्छा लड़का है। मगर वो अनाथ है। उसका इस दुनिया में कोई भी नहीं है।”
“वो अभी पूरी मेहनत करके अपना करियर बनाने मे लगा है। जैसे ही वह कुछ बन जाएगा ,वह सुनयना के माता-पिता से उसका हाथ माँगने आएगा।” यह सब सुनकर ठाकुर साहब और सावित्री देवी के पैरो तले से तो जमीन ही खिसक गई।
ठाकुर साहब ने भी कड़े शब्दों में अपना फैसला सुनयना को सुना दिया। उन्होंने कहा ,”हमारी इकलौती बेटी होने की वजह से हमने तुम्हें हमेशा अपनी पलकों पर बिठा कर रखा । तुम्हारी हर जिद को माना मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हम तुम्हारी हर नाजायज ज़िद को भी पूरी करेंगे।किसी भी एरे-गैरे लड़के से, बिना उसके कुल या धर्म को जाने , हम अपनी इकलौती बेटी का रिश्ता कभी भी नहीं करेंगे।”
यह सुनकर सुनयना एकदम दुःखी हो गई।उसे ये अच्छी तरह से पता था की समीर एक बहुत अच्छा लड़का था और वो उसे हमेशा खुश रखेगा। सबसे बड़ी बात वो उससे बेइंतहा मोहब्बत करती थी। मगर ठाकुर साहब और सावित्री देवी उसकी एक भी दलील सुनने को तैयार ना थे।
जिस बेटी के बिना मांगे, उन्होंने उसकी सारी ख्वाहिशें हमेशा से पूरी की थी, उसकी जिंदगी के सबसे बड़े फैसले को लेने का अधिकार उससे छीन लिया गया था। बिना उसकी मर्जी के उसका रिश्ता ठाकुर साहब ने अपने ही बराबरी वाले एक खानदान में तय कर दिया।
अब सुनयना के पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। उसने अपनी सगाई के एक दिन पहले अपने माता-पिता के नाम एक पत्र लिखा।उस पत्र मे सुनयना ने लिखा,
पिताजी,
“आपने मुझे मेरे जीवन की हर खुशी दी। मुझे हमेशा राजकुमारियों सा जीवन दिया। मगर मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी को आपने मुझे भूलने का फरमान सुना दिया। यकीन मानिए पिताजी, मैंने पूरी कोशिश की कि मैं समीर को भूल जाऊं मगर उसे भूलना मेरे बस में नहीं है। हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा
माँ,” मैं कभी आपकी अच्छी बेटी नहीं बन पाई। मैं आज हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर जा रही हूँ। अगर भगवान ने चाहा, तो” मैं तुम्हें फिर मिलूंगी, कहाँ और कैसे मैं नहीं जानती”।
आपकी नालायक और अभागी बेटी
सुनयना।