कहो विदुर कब तक मौन रहोगे
कब तक यूँ धीर धरोगे
कहो विदुर कब तक मौन रहोगे
कब तक तुम हर स्त्रियों में
बैठी पांचाली को
सभा में यूँ लुटता देखोगे
पांचाली ?
हाँ पांचाली
तब थे वो पाँचों अलग अलग
अब एक ही में वो सारे दुर्गुण मिलते हैं
कहो विदुर कब तक मौन रहोगे
क्या सत्ता की चाकरी इतनी प्यारी है
याद रखो के आज हमारी तो
कल तुम्हारी भी बेटी की बारी है
दुर्योधन कितना भी बलवान था
अन्त तो उसका भी श्मशान था
कहो विदुर कब तक मौन रहोगे
सुन द्रौपदी तू भी अब
सिर्फ़ केश खोलने से क्या होगा
अब तुझे खुद के लिए लड़ना होगा
अब ना कोई केशव आएगा
तेरा चीर बढ़ाने को
तुझे इन कलयुगी
कौरवों से बचाने को
तब तो था सिर्फ़ राजा अंधा
अब प्रजा भी अंधी है
और जो बैठे हैं घर में
पितामह भीष्म, विदुर
वो भी उतने ही अंधे है
और कौरवों की तरह ही गंदे हैं
कहो विदुर कब तक मौन रहोगे
कब तक यूँ धीर धरोगे
कहो विदुर कब तक मौन रहोगे…
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