नारी जीवन का सबसे सुंदर रूप माँ का माना जाता है और वह माँ तभी बनती है जब उसका शारीरिक विकास पूर्ण हो।एक स्त्री के लिए मासिक धर्म का होना बहुत आवश्यक है । यही उसकी परिपूर्णता का परिचायक होता है। किशोरावस्था में आते-आते लड़कियों के शरीर में बदलाव आना और मासिक धर्म का शुरू हो जाना एक नैसर्गिक प्रक्रिया है।
यह प्रजनन तंत्र में होने वाले बदलावों का आवर्तन चक्र होता है, जिसे महावारी, रजोधर्म ,मासिक चक्र (Menstural cycle) या पीरियड भी कहते हैं। यह केवल प्रजनन के नज़रिए से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। नियमित महावारी का आना सही स्वास्थ्य और शरीर में बनने वाले हारमोन्स को बताता है जबकि अनियमित महावारी असामान्य स्वास्थ्य का संकेत हो सकती है ।
पीरियड को लेकर समाज में बहुत सी धारणाएँ बनी हैं। इन दिनों में स्त्री को अपवित्र माना जाना और उसके साथ दूरियाँ बनाना जैसा व्यवहार। इस समय होने वाली समस्याओं से निबटने के लिए बेहद ज़रूरी है कि अपनी जीवन शैली में बदलाव लाया जाए एवं खानपान का ध्यान रखा जाए।इन दिनों महिलाओं के साथ सामान्य व्यवहार रखा जाए जिससे की वह तनाव मुक्त रहें। लेकिन ऐसा देखा गया है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ कुछ स्थानों में सामान्य व्यवहार नहीं होता ।
संकीर्ण मानसिकता के चलते इस विषय पर आज भी खुलकर चर्चा नहीं होती ।कई बार शर्म के कारण स्त्रियाँ बता नहीं पाती या अपने नैपकिन्स व टेम्पोन्स को छुपाती हैं। खासकर ग्रामीण परिवेश में तो उन्हें रसोई एवं घर के कामों से दूर रखा जाता है। इसे मानवतापूर्ण व्यवहार से बाहर रखा जाता है और वैज्ञानिक रूप देने के बजाय धार्मिक पवित्रता-अपवित्रता से जोड कर देखा जाता है।
पीने के पानी जैसी आवश्यक चीज़ को छू लेने से उसका अशुद्ध हो जाना, पूजागृहों में रजस्वला का प्रवेश वर्जित एवं मांगलिक कार्यों मे, हवन में दूर से ही उपस्थित होना । ये सब मान्यताएँ अवैज्ञानिक तो हैं ही साथ ही अमानवीय भी हैं ।विडम्बना तो यह भी है कि न सिर्फ ग्रामीण परिवेश में ही नहीं बल्कि शहरीय वातावरण में भी इन रूढ़िवादी बातों को मानने वाला एक वर्ग आज भी है।
इस ब्लाॅग में महिलाओं के प्रति बनाई हुई कुछ ऐसी ही अवधारणा को बताना चाहा है कि महिलाएँ इन कठिन दिनों मे किन-किन समस्याओं का सामना करती हैं । पहाड़ों के बीच बसी घाटी ,विषम भौगोलिक परिस्थितियों, दुरूह जीवन शैली, आधुनिक सुविधाएं शहरों की तुलना में बहुत कम।अधिकांश महिलाएं पुरूषों की तुलना मेंअधिक मेहनती ।
एक नैसर्गिक प्रक्रिया से गुज़रने के दिनों में उन्हें इस तरह अलग कर दिया जाता मानों कोई अभिशाप झेल रही हों।
जी हाँ, सुदूर पर्वतीय स्थानों में मैंने देखा कि मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं एक अलग जगह पर बैठा दिया जाता ।वहीं ज़मीन पर चटाई या फिर कोई पुराना सा बिस्तर होता जिस पर वह सोती ।इन दिनों उसके हाथ का स्पर्श अशुद्ध मानते ।धार्मिक क्रियाकलापों में तो उसकी भागीदारी वर्जित ही होती, पर सामान्य दिनों-जीवन में भी उसे कुछ छूने की अनुमति नहीं होती ।
रसोई भी परिवार का कोई अन्य व्यक्ति करता ।उसे खाना भी अलग दिया जाता यहां तक की बर्तन भी अलग ।दूर से उनमें खाना डाल दिया जाता।पाँच दिन तक बिल्कुल अलग रहने के बाद नदी किनारे जाकर इस्तेमाल किए गए हर वस्त्र-बिस्तर वगैरह को उसे धोना होता और फिर स्नान कर घर में प्रवेश करती ।जहाँ नदी नहीं वहां घर के बाहरी हिस्से में ये सब करना होता । न बताते हुए भी बच्चे-पुरूष और देखने वालों को सब पता चल जाता।
ये सब देखकर मैं सोचने में विवश हो जाती कि यदि अपवित्र और अशुद्ध मान भी रहें हो तो रजस्वला के साथ व्यवहार सामान्य होना चाहिए।शिक्षित एवं शहरी परिवेश में भी तो महिलाएं इन दिनों से होकर गुज़रती हैं ।वहां तो सब कुछ सामान्य लगता है।स्वच्छता आवश्यक है पर संकीर्ण मानसिकता के चलते रजस्वला से भेदभाव उचित नहीं।
पिछले कुछ वर्षों में कुछ मान्यताओं में बदलाव आया है। मासिक धर्म पर बने सामाजिक टेबू को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। स्त्रियाँ अब आवाज़ भी उठा रही हैं और इस मुद्दे पर होने वाली परिचर्चाएं भी काफी मददगार साबित हो रही हैं। वह स्वयं सोशल साइट्स पर होने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा बन रही हैं । पैडमेन जैसी फिल्में आई हैं जिन्होंने मैन्सुरेशन सम्बंधित पुरानी नकारात्मक मान्यताओं को न सिर्फ तोड़ा बल्कि यह एक स्वभाविक क्रिया है, इसे स्वीकारा । स्वच्छता आवश्यक है पर संकीर्ण मानसिकता के चलते रजस्वला से भेदभाव उचित नहीं।
ये एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जो नारी की संपूर्णता का प्रतीक होता है।हमें यह समझने की ज़रूरत है कि एक स्त्री के लिए मातृत्व सुख जितना ज़रूरी है, उतना ही अहम है उसका मासिक धर्म । जो सही मायनों में उसके शारीरिक विकास और सही स्वास्थ्य की सूचक है।