गीता जी की किताबों में अलग अलग परिवेश में सशक्त नायिकाओं का चित्रण किया गया है। राजनटनी उनकी सबसे हालिया किताब है।
किताबे पढ़ने का शगल!
पढ़ते पढ़ते चाय का ठंडा होना , बाकि कामो को भूल जाना ये सब बेहद आम सी बाते हैं। किताबें जहां किरदार साथ रह जाते हैं और उनको पढ़ते हुए हंसना ,रोना मुस्कराना और खो जाना !
कितना कुछ, ऐसे में कोई किताब जहां किरदार आपको स्त्री होने का गुरुर दे जाये , आपकी आँखों में ज़रा सी नमी छोड़ जाये और एक खलिश ज़रा सा दर्द की काश न होता ये पर मोहब्बत पर ज़ोर किसका?
और जो हुआ वो न होता तो ये किताब न होती।
राजपाल एन्ड सन्स के द्वारा प्रकाशित किताब “राजनटनी ” जिसे लिखा है वरिष्ठ पत्रकार गीता श्री जी ने।
मुजफ्फरपुर में जन्मी ,गीता जी चौबीस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रीय रहने के बाद साहित्य लेखन में लीन है। पत्रकारिता के दौरान वो प्रतिष्ठित पत्रिका आउटलुक की सहायक सम्पादिका व बिंदिया पत्रिका की सम्पादक रहीं है । अब तक पांच कहानी संग्रह व एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
स्त्री विमर्श पर उनके विचारों की साफगोई और और सशक्त रूप में उन्हें शब्दों में उतार देने की कला उनके व्यक्तित्व का कायल बना देती है।
गीता जी की किताबों में अलग अलग परिवेश में सशक्त नायिकाओं का चित्रण किया गया है। राजनटनी उनकी सबसे हालिया किताब है। यह राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है जिस पर हर ओर से सुंदर प्रतिक्रिया आ रही है।
आज कल के समय में मुलाक़ात करने का नया तरीका है ऑनलाइन और मेरी मुलाक़ात गीता श्री जी से यूँ ही हुई। KalaManthan के मंच पर शक्ति उत्सव के आखिरी दिन गीता श्री जी का आना और उनसे प्रतिमा सिन्हा जी की, राजनटनी पर बात चीत।
कलामंथन मंच के लाइव सेशन के बैकेंड पर उनसे हुई बात चीत से उनके विचारों से प्रभावित भी हुई और सहमत भी। अक्सर सोचने वाली स्त्रियां एक जैसा सोचती हैं।
बातचीत के दौरान कहीं न कहीं उनके रचे किरदार के प्रति रूचि बढ़ती गयी। स्त्री विमर्श पर बेबाकी से अपने विचर रखने वाली लिखिका की नायिका यकीनन अनोखी होगी इसका यकीन था।
उस वक़्त किताब की बातचीत के दौरान कई बार मन किया की बैकेंड छोड़ कर आ जाऊँ और कहूँ की हाँ यही…. यही तो कहना था मुझे भी ! पर किया नहीं लेकिन “राजनटनीं” मीना को ले आयी।
कथा 12वीं शताब्दी के समय में बंग प्रदेश के राजकुमार बल्लाल और मिथिला की राजनटनी के प्रेम व कर्तव्य की है ।
हिरणी सी चंचल
तितली सी उड़ती
मुक्तकेशिनी मीना
मीना ,मीन जैसी आँखों वाली नटनी जो माछ और मखान वाले मिथिला में पली बढ़ी और उसी पर न्योछावर हो गयी। कुसुम खेत में पली नटनी जिसका अंग अंग कला से सुवासित था।
एक कलाकार जिसे अपनी कला से प्रेम था । प्रेम इतना की वो कला में और कला उसमे रच बस गई।
कलाकार ऐसी जिसने राजमहल के वैभव को भी अपनी कला के रंग को क्षीण न करने दे।
और स्त्री ऐसी जो अपने प्रेमी ,शत्रु देश के राजकुमार बल्लाल सेन का सन्देश सुन “श्रवण प्रेम ” कर बैठी और प्रेम भी ऐसा जिसमे मीना सुध बुध खो बैठी। खुद पर जोर न रहा और बहती नदी के साथ मीना बहना चाहती थी अपने बैरी पिया के पास…
ऐसे प्रेम में भी स्त्री सजग रहे अपने प्रेम और कर्तव्य के प्रति , ऐसा चित्रांकण उसके चरित्र का अलग ही रूप दिखाता हैं।
मीना और बल्लाल का प्रेम कथा आपको टीस दे जाती है। क्या जाता समय का अगर ये प्रेम कथा पूरी हो जाती।
क्या जाता अगर बल्लाल और मीना अपने घर को मिलकर सजा लेते , किसी पारिजात के निचे एक प्रेम काव्य लिख लेते !
लेकिन ये होता तो किताब न होती !
प्रेम के पूरे समर्पण में भी अपनी माटी और पुरखों के मन सम्मान का ख्याल रखना, प्रेम और देश दोनों से ही अपना फ़र्ज़ निभा जाना भला किसी साधारण स्त्री के लिए कहाँ मुमकिन था।
लेकिन मीना साधारण नहीं थी अलोकिक थी अद्भुत थी।
और इस अद्भुत कथा को लिखने और हमें हाथ पकड़ कर मीना तक ले जाने की पूरी कवायद के लिए गीता श्री जी को बधाई और धन्यवाद।
इतनी सरल और प्रभावशाली भाषा जो कहीं न कहीं ज़हन में उतर भी जाती है और रह भी जाती है।
मीना से मिलिए और ज़रूर मिलिए।
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