कभी चाय की प्यालियों से छलकती है दोस्ती
कभी कांफी की खुशबू बन जाती है
लस्सी की गिलासों में चीनी बन घुलती है
बारिश में भीगी महक सी हमसे लिपट जाती हैं।
कभी पकौड़े की थाली बन आती है
कभी चाट का चटकारा बन जाती है,
कालेज की सीढ़ियों पर बैठ वो सुस्ताती है,
हां वो दोस्ती है जो बात बात में मुस्कुराती है।
कभी नोट्स के पन्नों में छुप जाती है,
कभी प्रेक्टिकल फाइल में पेंसिल संग उलझती है,
हां वो दोस्ती ही है जो साथ साथ चलती है
कापी किताबें छूट भी जाए
वो साथ निभाती है।
प्रेम, प्रणय क्रीड़ा से..
प्रस्तुत नहीं होता..
प्रेम, अंग प्रत्यंग की लालसा
से गहरा नहीं होता..
प्रेम,, दो देह से गुजर कर भी
पूरा नहीं होता..
.....
प्रेम,, ह्रदय पीड़ा से,
प्रशस्ति...