प्रेम, प्रणय क्रीड़ा से..
प्रस्तुत नहीं होता..
प्रेम, अंग प्रत्यंग की लालसा
से गहरा नहीं होता..
प्रेम,, दो देह से गुजर कर भी
पूरा नहीं होता..
…..
प्रेम,, ह्रदय पीड़ा से,
प्रशस्ति पाता है..
प्रेम,समक्ष ना होने पर कल्पना से..
जीवंत हो पाता है..
प्रेम,प्राप्त ना होने पर प्रतीक्षा से..
अनंत तक जा पाता है..
प्रेम,, गुजर कर दो आत्माओं से..
पूर्ण व्योम हो पाता है..
कलामंथन भाषा प्रेमियों के लिए एक अनूठा मंच जो लेखक द्वारा लिखे ब्लॉग ,कहानियों और कविताओं को एक खूबसूरत मंच देता हैं। लेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं और ज़रूरी नहीं की कलामंथन के विचारों की अभिव्यक्ति हो।
हमें फोलो करे Facebook