इधर कुछ दिनों से अंजलि बैंक से काफ़ी देर से लौटने लगी थी। अंजलि और अजय दोनों कामकाजी थे। अंजलि बैंक में और अजय पब्लिक सेक्टर के किसी संगठन में कार्यरत था। दोनों के विवाह को एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था।
अंजलि बचपन से ही अपनी मौसी के पास रहकर पली-बढ़ी थी। उन्हीं को मां के समान मानती थी और मौसी के किसी परिचित ने ही अजय से उसका यह रिश्ता करवाया था। ससुराल में ज़िन्दगी आराम से गुजर रही थी पर इधर कुछ समय से अंजलि का देर से घर आना, कभी सुबह ज़ल्दी चले जाना, घर वालों को नागवार गुजरने लगा था। अजय ने पूछा तो उसने ऑफिस में काम अधिक होने की बात कह दी। यह सिलसिला कुछ दिनों से लगातार चल रहा था। कभी वह जल्दी चली जाती और कभी देर से लौटती।
दिसंबर का महीना आधे से अधिक बीत चुका था। सभी नए साल के स्वागत की तैयारियां कर रहे थे। अजय भी नए साल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उसे अपने और अंजलि के लिए कुछ शॉपिंग करनी थी अतः एक शाम अंजलि को फोन मिलाया लेकिन प्रत्युत्तर में ‘नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर’ आ रहा था। उसने बैंक के लैंडलाइन नंबर पर संपर्क किया तो पता चला कि अंजलि काफी पहले ऑफिस से निकल गई है।
अजय के मन में कुछ संदेह हुआ। लेकिन अंजलि के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया था। वह घर के सारे काम समय से निपटाती थी। सुबह भी सारे काम करके जाती थी लेकिन उसके चेहरे पर एक तनाव और हमेशा ज़ल्दीबाजी…इस बात को अजय और उसकी मां दोनों महसूस कर रहे थे।
अगली शाम अजय ने फिर अंजलि के बैंक के बाहर पहुंचकर ही उसे फोन कर लिया तो अंजलि ने बताया कि वह बैंक में है, काम कुछ ज्यादा है इसलिए घर आने में थोड़ा समय और लग जाएगा।
अजय गार्ड से बात कर बैंक के अंदर जाने लगा तो गार्ड ने बताया कि अंजलि मैम लगभग आधा घंटा पहले घर के लिए निकल चुकी हैं। अब अजय परेशान…।
आज वह परेशान होने के साथ-साथ थोड़ा गुस्से में भी था।
“आखिर ये अंजलि ऑफिस का बहाना बनाकर कहां जाती है…?”
कई तरह के विचार उसके मन में आने लगे। घर पहुंचा तो अंजलि भी घर पहुंच चुकी थी। वह उसे एक दो बार और आजमाना चाहता था।
अगले दिन सुबह वह बोला, “अंजलि, आज तुम थोड़ा ज़ल्दी घर आ जाना। शाम को राज के घर चलेंगे।”
राज अजय का मित्र था और उसकी पत्नी से अंजलि की भी अच्छी दोस्ती हो गयी थी।
अंजलि ने चलते-चलते ज़वाब दिया,”मैं पूरी कोशिश करूंगी समय पर आने की लेकिन आजकल बैंक में काम कुछ ज़्यादा है।”
अजय को यह बात कुछ अटपटी ज़रूर लगी परंतु अंजलि से कुछ कह भी नहीं पा रहा था क्योंकि अंजलि के सेवा भाव, प्रेम और समर्पण में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया था। पांच सदस्यों का परिवार था जिसमें सबका पूरा-पूरा ध्यान वह रखती थी।
दिसंबर की आखिरी शाम भी आ गयी। अजय ने अपने कुछ मित्रों को सेलिब्रेशन के लिए घर पर बुलाया था। सभी लोग लाॅन में बैठे बोनफायर का आनंद लेते हुए खाना, गाना, डान्स और मौज-मस्ती कर रहे थे। सारा घर रोशनी से जगमगा रहा था। लाॅन में संगीत और सजावट के विशेष इंतज़ाम किए गये थे।
बाहर नए साल का जश्न पूरे शबाब पर था पर भीतर……..
भीतर अंजलि का दिल डूबा जा रहा था। एक तूफान उमड़ रहा था उसके भीतर। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी उलझन कैसे सुलझाए। वह बीच-बीच में बाहर जाती, फिर भीतर आ जाती। जश्न मनाती भी कैसे…? जश्न मनाने जैसा कुछ भी नहीं था उसके जीवन में। जिस यथार्थ से अभी कुछ दिनों पूर्व उसका परिचय हुआ था, वह बहुत ही भयावह था। चाह कर भी वह अजय और परिवार के लोगों को कुछ नहीं बता पा रही थी।
तभी अचानक अजय की आवाज सुनाई दी,”अंजलि…. अंजलि ……! कहां हो तुम…? कहां गायब हो जा रही हो बीच-बीच में..।” वह बाहर गई। होठों पर एक फीकी मुस्कान लेकर बेमन से सबका साथ दे रही थी। देर रात जब पार्टी खत्म हुई तो उसके दिल को सुकून मिला। काफी थकी हुई थी। अंदर आ कर लेट गयी पर नींद तो आंखों से कोसों दूर थी। पुरानी जिंदगी उसकी आंखों के आंसुओं में तैर आई।
अपने माता पिता की एकलौती संतान थी वह। सबकी लाडली और दुलारी। सुंदर सी गृहस्थी चल रही थी माता-पिता की। अचानक न जाने क्या हुआ…? मां उसे छोड़कर न जाने कहां गायब हो गई। कुछ ही समय बाद मां की जगह एक नई महिला ने ले ली जिसे वह मां का दर्ज़ा नहीं दे पाई। मां के बारे में पूछती तो पिता कहते कि तारा बन गई है। आसमान के तारों के बीच मां को ढूंढती और रोती। नयी मां का व्यवहार अच्छा नहीं रहा। इस बीच दूसरे शहर में रहने वाली मौसी उसे अपने साथ ले गई और फिर तो पिता से भी रिश्ता टूट गया था।
कुछ बड़ी हुई तो एक बार उसने मौसी को किसी पारिवारिक सदस्य से बात करते हुए सुना था कि उसकी मां को पिता ने घुमाने के बहाने कहीं पहाड़ी से धक्का दे दिया था और फिर उनका कोई पता नहीं चला।
और इधर इसी बीच लगभग बीस दिन पहले वह बैंक की ओर से एक वृद्धाआश्रम गई थी, जहां पर वृद्धों के लिए फल और कुछ गर्म कपड़े देने का प्रबंध बैंक ने हर वर्ष की तरह इस बार भी किया था। संरक्षक के आग्रह पर वह चाय पीने रुक गई तो उन्होंने वहां रह रहे दस-बारह वृद्धों की आपबीती उसे सुनाई।
उनमें से दूर बैठी एक महिला की तरफ इशारा करते हुए संरक्षक ने बताया कि यह वृद्धा बहुत ही शांत और ममतामयी है। अपने अतीत के बारे में कुछ नहीं बताती, ज़्यादा कुरेदने पर बस रो पड़ती है। कहीं से पता चला है कि इनके पति ने किसी दूसरी महिला की वजह से जान लेने की नीयत से इन्हें पहाड़ी से धक्का देकर गिरा दिया था परन्तु ये किसी तरह बच गई। इनकी एक छोटी सी बेटी थी, जिसे याद करके ये आज भी रोती हैं। सामाजिक संस्था से जुड़ा कोई सज्जन व्यक्ति कई वर्षों पहले इन्हें यहां पहुंचा गया था। पूछने पर भी ये किसी के बारे में कुछ नहीं बतातीं।
समय के साथ-साथ अंजलि अपना अतीत भूल चुकी थी परंतु आज उस वृद्धा की कहानी सुनकर उसे अपना बचपन ध्यान आ गया और मौसी की कही हुई वह बात भी…..।
अंजलि को महसूस हुआ कि हो ना हो ये वृद्धा उसी की मां है। उसके प्रति सम्मान और प्रेम उमड़ आया था उसके मन में। वह ऑफिस के बाद उन सभी वृद्धों की सेवा करने जाती और उनकी जरूरतों का ध्यान रखती। उस वृद्धा स्त्री के साथ वह अधिक समय बिताती थी। धीरे-धीरे अपनत्व बढ़ाकर वह उसका मन पढ़ना चाहती थी।
आज उसने तय कर लिया था कि वह उस वृद्धा के साथ-साथ वहां रह रहे सभी लोगों की भरपूर सेवा करेगी और इस सच्चाई के बारे में अजय और परिवार को सब कुछ सच-सच बता देगी। अंजाम चाहे फिर कुछ भी हो….।
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