अक्सर सोचती हूँ की न लिखूं।
ये रोज़मर्रा की बातें हैं और घटियापन ,ओछेपन और बीमार मानसिकता पर तो जी ही रहें हैं हम।
अपने काम पर ध्यान दूँ।
अच्छा लिखूं। अच्छा पढूं। अच्छा सोचूं।
समाज में कुछ बेहतर कर सकूं इस पर भी ध्यान लागाउँ पर फिर कहीं से कोई *** ,*** ,***** आ जाता है और ऐसी बकवास कर के जाता है की जी चाहता है की एक बार बार को मर्दों से विहीन हो ही जाये धरती तो क्या बुरा है।
जिस समाज में सड़क चलती लड़की को मात्र छू लेने भर से मर्दों को “सुख” प्राप्ति होती हो।
जहाँ “चैट”, पर ही सारे अरमान निकले जाते हो (क्योंकि रूबरू होने के लिए एक अदद पर्सनालिटी भी चाहिए)
जहाँ मेस्सेंजर बात करने से ज्यादा अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन करने हेतु इस्तेमाल में लिया जाता हो
जहाँ “सेक्सिस्ट ” गाने और जोक्स पर हँसना आम है और उस हँसी का कोई बुरा नहीं मानता
जहाँ बिना बात किये “मेरी वाली” और बात करने पर बच्चों के नाम सोचने में देर नहीं होती
जहाँ लड़के के हर गिरे हुए कृत्य को भी “लड़के ऐसे ही होते हैं ” का पर्दा पहना दिया जाता है उस देश में अगर किसी नेता ने “लड़की 15 साल के बाद माँ बन सकती है तो शादी की उम्र 18 साल 21 करने का क्या औचित्य है ?”,पूछ लिए तो क्या हो गया ??
मतलब सही तो है।
बेवजह कानून बदलो। बेवजह काम करो।
अरे बलात्कार से बचने के लिए औरतों को शादी का खूंटा 18 क्या 14 पे पहना देना चाहिए और NCW की कार्यकर्ता ने तो कह ही दिया की बाहर अकेले न निकले महिला।
“तो बहन कुल मिला कर बात ये की 5 की होवे की 55 की घर से अकेले निकलो न और १५ के बाद पढ़ाई लिखाई जो करनी है कर लो बाकि काम तो बच्चे पैदा करने का ही है “
न न ऑफेंड न हो आखिर ताऊ यही तो कह गए। मतलब तुम मानसिक तौर पर एक रिश्ते को सँभालने के लायक हो या नहीं उससे फर्क नहीं पड़ता। बच्चा जनने की उम्र तो 15 हैं न तो शादी की उम्र भी वही हो।
औरत, प्रकृति के चक्र को आगे बढ़ती है किन्तु वही उसका एकमात्र उद्देश्य व् अस्तित्व नहीं !!
ये बात कितनी बार लिखी जाये कितनी बार बोली जाये ,कितनी चर्चा परिचर्चा आलेख ,किताबें कहानियां !
क्या मर्द ज़ात में कोई बीमारी है जो शायद 95 % से ज़्यादा मर्दों को है ,जहाँ औरत के ज़िक्र पर ही उनकी ज़बान और सोच दोनों ही नियाग्रा फॉल की तरह तलहटी में गिर जाती है ??
अक्सर सोचती हूँ की पितृसत्ता का ज़हर किस हद तक भीतर है की कोई भी ज्ञान इनको छू कर नहीं निकलता और सूट बूट पहने हुए फाइव स्टार में खाते, आते जाते अचानक ज़रा सी और डोर ढीली होती देख तिलमिला जाते है।
अगर उम्र 18 की जगह 21 हुई तो ज़ाहिर है लड़की कुछ और पढ़ाई करेगी। पढ़ीलिखी ,शायद नौकरी करने के बाद शादी करने वाली लड़कियों की तादाद बढ़ेगी और इसी के साथ सवाल बढ़ेंगे।
सवाल कमतर आंके जाने पर
सवाल बराबरी के अधिकार पर
सवाल सम्पत्ति के अधिकार पर
आपकी हर पिछड़ी सोच और औरतों को एक कदम पीछे रखने पर सवाल उठेंगे जो आपको
गवारा नहीं, तो बस आपने सवाल उठा लिया , उम्र को बढ़ने का औचित्य क्या है जब लड़की (“गाय ,भैंस की तरह ) बच्चे पैदा करने की उम्र की हो जाये उसे जनने के काम में लगा दो !!!
सवाल पर ममता की बेड़ियां !
इस सवाल और इस कानून पर इनकी तिलमिलाहट इस बात का संकेत है की पढ़ी लिखी नारियां और पितृसत्त की ढीली होती डोर इनकी परेशानी की वजह है। वो सवाल जो बसरों से मौन थे वो आज की नारी पूछती है ,शोर मचाती है, जवाब खुद ढूँढती है ,ज़रूरत पड़े तो इस खोज में अकेले ही आगे निकल जाती हैं।
पिछली दोनों ही घटनाएं एक सोच के ही दो पहलुओं को दर्शाती हैं।
यहां ख़ास बात ये की पितृसत्ता की सोच को आगे ले कर औरत और मर्द दोनों ही चल रहें है।
और अच्छी बात ये की ढीली डोर का डर ये बताता है की डोर ढीली हो रही है।
सोच की नीचता और गंदगी का अंदाज़ा सिर्फ इस एक विचार से ही लगाया जा सकता है और दुःख गुस्सा और संत्रास इस बात का की सत्ता के गलियारों में मौजूद नेता (औरत और मर्द ) और झुग्गीयों और गली कूचे में मौजूद आवारा मर्दों और खास जगहों पर औरतों को मात्र “माँस का लोथड़ा ” समझने वाली औरतो में कोई फर्क नहीं।
“हम” इस समाज में रह रहे है
जी रहें हैं
लड़ रहें है
और अपनी आवाज़ उठा रहें हैं (बस इन पर जूता उठाने का मौका मिल जाये ये मेरी परसनल विश लिस्ट )
और आवाज़ ऊँची भी होगी और डोर ढीली भी… और अंततः गांठ खुलेगी।
वो जो कहते थे
पंख कमज़ोर, भार अधिक
और उड़ान मुश्किल है
और उस पर घड़ी दो घड़ी में
पंख कतरने की तमाम कोशिशें
ये जो टुकड़ा भर आसमान देखती हो
बस उतनी ही है कायनात
ये नए आसमान को खोजने की जिद्द
ये किसी लम्बी परवाज़ की चाहत
और
पंख फैला कर उड़ने का ख़्वाब
सब समेट लो….और मूंद लो आँखे
सुनो,
मेरे पँखो में तमाम सपनो
के एक एक पर जुड़ गए है
मेरी परवाज़ में
उड़ान भरती है,
तमाम आज़ाद खयालों की सोच
मैने ख्वाबो को भार नहीं बनने दिया
मैंने फैला लिए हैं पंख अपने
मेरे डैने बहुत वृहद हो गए हैं
ये टुकड़े भर आसमान को
चख कर
पूरी कायनात में उड़ान भरेंगे
रंगेंगे तमाम सपनो में रंग
सपने जो महज़ मेरे नही होंगे
सपने जो दूसरों को पंख देंगे
सपने जो दूसरों की भी उड़ान होंगे
सुनो,
तुम ज़रूर देखना
ज़मीन से
ये अनोखी उड़ान!
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