ये लेख कलामंथन समूह की लेखिका अपर्णा प्रधान द्वारा लिखित है। आज के दौर में पत्राचार का सिलसिला थम चुका है। कलामंथन ने दिया प्रेमपत्र लिखने का न्योता और हमे मिले कुछ खूबसूरत पत्र। अपर्णा जी का प्रेम पत्र “ख़्वाब को चिठ्ठी ” ज़रूर पढ़िए !
जान-ओ-जिगर ख़्वाब मेरे,
उम्मीद करती हूँ कि तुम्हारा लालन पोषण बहुत अच्छा हो रहा होगा I बचपन से तुम मेरे साथ हर वक़्त रहे हो I मेरे साथ साथ तुम भी बढ़ते रहे हो I हर दिन तुमको पलकों पर बैठा कर रखा है I तन्हा रातों को जाग जाग कर तुम्हें पाला है मैंने I मैंने तुम्हारे साथ इतना लम्बा सफ़र तय किया I मुझे बहुत अच्छा लगा I
कभी तुम नाराज़ हुए या मायूस हुए तो बहुत दुलारा तुम्हें I तुमको दुनिया की नज़र न लग जाए सीने से लगाए रखा I किसी से भी कुछ न कहा I तुम्हारे सारे नख़रे मैंने उठाए I
रंगों के सफ़र की तैयारी शुरू से करती रही I खवाबों की दुनिया बहुत हसीं होती है मगर उस को हक़ीक़त में बदलना भी ज़रूरी होता है I अब तुम काफ़ी बड़े हो गए हो और समय आ गया है कि दुनिया के सामने तुम्हें लाया जाए I मैंने इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतज़ार किया है I तैयारी करती रही मन ही मन और तुम्हें पलता देख कर बहुत उत्साहित और प्रसन्न होती रही I आख़िर जब ख़्वाब हक़ीक़त में बदलने वाले हों तो कौन ख़ुश नहीं होगा I
तुम्हारे लिए आज बाज़ार से जा कर कैन्वस, रंग और ब्रश ले कर आ गई हूँ I जी कर रहा है अब कैन्वस पर तुम्हें उतार दूँ और दुनिया के सामने तुम्हें सजा कर पेश करूँ I मैं जानती हूँ तुम भी यही चाहते हो I तुम मुझे प्राणों से भी ज़्यादा प्रिय हो I
चलो रंगो का थाल मैंने सजा लिया है I अब जी कर रहा है कैन्वस पर रंगों की दुनिया के सफ़र में तुम को कैन्वस पर उतार कर निखारना शुरू कर दूँ I रंग बिरंगे प्यारे प्यारे चित्र काग़ज़ और कैन्वस पर उभारने में लग जाऊँ I
जल्दी ही कान्हा कैन्वस पर बांसुरी बजा कर राधा को मनाने लगेंगे – गोपियों के संग रास रचा कर छेड़ छाड़ करने लगेंगे I कभी शिव को तांडव करेंगे तो कभी माँ दुर्गा के आशीर्वाद कैन्वस पर बरसने लगेंगे I कभी मंदिर की घंटियों के सुर काग़ज़ पर बजने लगेंगे I कभी दुआ में हाथ उठने लगेंगे I
कभी कागज़ पर फूल मुस्कुराएँगे , कभी परिंदे कैन्वस पर उड़ान भरेंगे I कभी कागज़ पर सूरज खिला देंगे तो कभी भोर की लालिमा से सजा देंगे I कभी चाँद चाँदनी से इश्क़ फ़रमाएगा, तो कभी बचपन की गलियों में जाकर हलचल मचाकर बचपन फिर से जी लेंगे I
कभी कागज़ पर दो प्रेमी समुंदर किनारे सुरमाई शाम का आनंद उठाएँगे I कभी प्रेम की बरसात में भीगने लगेंगे I रंगो से कैन्वस और कागज़ की सजावट से मन प्रफुल्लित हो जाएगा जब धीरे धीरे तुम साकार होने लगोगे I
मेरी ख़ुशियों को चार चाँद लग जाएँगे जब दुनिया के कोने कोने में तुम्हारे ही चर्चे होने लगेंगे I उस दिन बिन पंखों के उन्मुक्त गगन में उड़ कर मैं आसमान को इन्द्रधनुषी रंगों से रंग डालूँगी I
तुम्हारी अपनी
अपर्णा