स्त्री,नारी,कन्या,कांता ,परिणिता नारी का हर एक संबोधन कितना प्रभावित और आकर्षित है। नारी की उपमा पा मैं स्वयं को असीम भाग्यशाली समझती हूँ।”मेरी जननी मेरी माँ मैं आपकी कृतज्ञ हूँ मुझे मेरा अस्तित्व देने के लिए।”
“बचपन से ही मैंने अपने कन्या स्वरूप से बहुत-बहुत प्यार किया है। मुझे प्यार है खुद से ,खुद के नारी होने से। आज भी अपने बचपन के दिनों को याद करके मैं चहक उठती हूँ। कितनी सुंदर मनभावन थे ,मेरे बचपन के दिन, वह चिड़ियों की तरह चहकना ,सजना, सवरना ओह! कितने सुंदर दिन थे।”
पुरुष प्रधान हमारे समाज में मैं अनेकों साहसी नारी को सुनते और पढ़ते आई हूँ, और हमेशा उनसे प्रभावित हुई हुँ। नारी की अदम्य साहस का साक्षात स्वरूप मैंने अपनी#माँ में देखा है।माँ को मैंने हमेशा अपनी सारी जिम्मेदारियों को बहुत ही प्यार और श्रद्धा से निभाते देखा है। हमेशा हमारी हर जरूरत के लिए हर वक्त तत्पर देखा , कितनी सहजता से माँ हमारा और हमारे बुजुर्गों का ख़्याल रखती आई है,वह भी प्यारी मुस्कान के साथ। उस वक्त यह बात कुछ खास नहीं लगती थी, पर आज माँ बनने के बाद इसकी क़ीमत हर वक्त समझ में आती है।
इतनी जिम्मेदारियों के बावजूद मैंने मां को काव्य रचते चित्रकारी करते देखा। हर कठिनाइयों का सामना साहस के साथ करते देखा और,”माँ” के रूप में नारी के अदम्य साहस से प्रभावित हुए हूँ”। किताबों के ज्ञान का जीवन में महत्व तो है पर जब कभी भी जीवन में कठिनाइयों से हारने लगती हूँ अपनी माँ के प्रभावित जीवन यात्रा को देख फिर से नए साहस और धैर्य के साथ खड़ी हो जाती हूँ ।यह बात अपने आप में बहुत खास है।
तरक्की के अनेकों तकनीक होने के बावजूद यह बात 100% सत्य है कि हर बच्चे की प्रथम शिक्षिका उसकी अपनी माँ होती है, जो उसे जीवन के सारे गूढ़ ज्ञान बड़े ही प्यार से सिखाती है। हर उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण एक स्वस्थ परिवेश में होता है, और यह स्वस्थ परिवेश एक गृहिणी ही बनाती है अपना सर्वस्व लगाकर।
मैंने अपने नारी होने के स्वरूप से हमेशा ही बहुत-बहुत प्यार किया है, और खुद को कभी भी किसी चुनौती में कमजोर महसूस नहीं किया।”पर मुझे मेरे स्त्री होने पर सर्वाधिक गर्व की अनुभूति उस क्षण हुई जब मैंने माँ की उपमा पाई, जब मैंने अपनी नन्हीं गुड़िया को जन्म दिया।”
पुरुष प्रधान समाज में यह जानते हुए भी कि नारी किसी क्षेत्र में कम नहीं और नारी का हर एक स्वरूप बहुत ही प्रभावशाली है।मेरे मन में कहीं ना कहीं एक बात थी कि कामकाजी महिला होने पर ही नारी अधिक प्रभावशाली प्रतीत होती है, पर मेरा यह भ्रम उस वक्त टूट गया जब मैंने अपनी नन्हीं गुड़िया को जन्म दिया। उस वक्त मुझे यह एहसास हुआ कि”ईश्वर ने नारी को कितना ख़ास बनाया है, कितनी अपार शक्ति ईश्वर ने नारी को दी है,
“एक नवजीवन के सृजन की”। यह संपूर्ण ब्रह्मांड उदय और अंत के चक्र में घूमता है, और ईश्वर ने अपनी शक्ति का यह अंश नारी में दिया है”एक नवजीवन को जीवन देने की”।
9 माह के हर पल में मैंने अपने नारी होने पर खुद को सर्वाधिक गर्व की अनुभूति महसूस की । एक नए जीवन को जिया अपने नन्हें के साथ।
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“मैंने कहीं सुना है:
“नारी माँ बनने के बाद और शक्तिशाली हो जाती है”
और आज मैं यह खुद महसूस करती हूँ। माँ बनने से पूर्व भी मेरे लक्ष्य थे पर अब उस लक्ष्य को सार्थक करने की तीव्र जिज्ञासा उत्पन्न होती है। माँ की जिम्मेदारियां मुझे बोझिल नहीं अपितु अग्रसर करती है जीवन की नई चुनौतियों की ओर, और प्रभावित करती है कुछ अलग करने के लिए ,जिसे देख मेरे बच्चे भी प्रभावित हो और जीवन में उचित राह का चयन करें। माँ की उपमा बिना शायद मेरी जिंदगी उतनी ही सूनी होती जितना चाँद बिना चाँदनी रात। माँ की उपमा ने मुझे संपूर्ण किया है।
“सच कहूँ तो नारी होना ही मेरे जीवन की मेरी वास्तविक पहचान है”।
नारी होने के अपने गौरवपूर्ण भाव को मैं अपनी एक छोटी कविता के रूप सार्थक करने की एक छोटी कोशिश करती हूँ।
नारी तेरी जीवन व्यथा
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नारी तेरी जीवन व्यथा
जननी के ही गर्भ से,
एक और जननी आती है।
इस सुंदर से जग को पावन बनाती है।
बचपन की किलकारियों से,
घर आँगन महकाती है,
अपनी मीठी बातों से,
सबका मन मोह जाती है।
जीवन के हर पड़ाव में ,
ऐसे ढल जाती है,
मानव जैसे जल में मिश्री घुल जाती है।
जड़ से उखड़े वृक्ष भी,
पुण: नहीं लहलहा पाते हैं,
पर तू तो हर माटी में खिल जाती है।
जहाँ पुरुष को पुरुष होने मात्र से ही,
ख्याति मिल जाती है।
नारी अपना सर्वस्व लगाकर
नारी का वास्तविक अस्तित्व पाती है
नारी तेरी जीवन व्यथा
जननी के ही गर्भ से
एक और जननी आती है।।