मैं कोई लेखिका नही हूँ बस लिखना चाहती हूँ ज़िन्दगी की हर शय को अपने शब्दों में बांधना चाहती हूँ। उड़ना चाहती हूँ अपनी कलम की उड़ान से, अपनी कल्पना और वास्तविकता को साथ लेकर।
कल्पना में सत्यता का शब्द पिरोए
हम-तुम रोएं,
गांव की हो, आंचल ढंकती नहीं क्यों
तुम सुहागन हों, चूड़ियां खनकती नहीं क्यों,
कामकाजी हो, हर वक्त चलती नहीं...