स्त्री,नारी,कन्या,कांता ,परिणिता नारी का हर एक संबोधन कितना प्रभावित और आकर्षित है। नारी की उपमा पा मैं स्वयं को असीम भाग्यशाली समझती हूँ।"मेरी जननी...
वर दे, वीणावादिनी , वर दे!
प्रिय स्वतंत्र- रव अमृत-मंत्र तव
भारत में भर दे!
काट अंध- उर के बंधन स्तर
बहा जननी ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर,
जगमग...
कल्पना में सत्यता का शब्द पिरोए
हम-तुम रोएं,
गांव की हो, आंचल ढंकती नहीं क्यों
तुम सुहागन हों, चूड़ियां खनकती नहीं क्यों,
कामकाजी हो, हर वक्त चलती नहीं...